गुब्बारे,
जो होते हैं सिर्फ फूले हुए
जिनमें भरी होती है
सिर्फ और सिर्फ हवा,
कोरोना, बनकर आया है
एक ऐसी सुई जो
निकाल दे रहा है उनकी हवा...
दर्द,
कई हैं इसके इलाज
दबा दो इसे दवा से,
या पैदा कर दो
कहीं और दूसरा दर्द
या ख्वाब दिखाओ कि
ये दर्द सह जाओ
आगे खूब हरियाली है
आगे सिर्फ खुशहाली है...
अमीर,
सक्षम है खुद के लिये भी
और दूसरों के लिये भी
यदि मदद करना चाहे तो,
मध्यम वर्ग,
सक्षम है खुद की जुरूरतों में
खुद की जिम्मेदारियाँ उठाने में...
पर गरीब वर्ग?
न आज का पता है न कल का
जो - जैसा बताये सुन लेते हैं
जो - जैसा समझाये समझ लेते हैं
जो ख्वाब दिखाओ देख लेते हैं
जितना भी दुख-दर्द मिले सह लेते हैं
कुछ जोर नहीं चलता तो रो लेते हैं,
असहाय देखते हुए तमाम अपनों को
भूख-प्यास या बीमारी से खो देते हैं...
और ईश्वर?
रख रहा है हिसाब
सबका - हर चीज का,
मासूमों का भी-चालाकों का भी
चालाकी भरे तर्कों का भी
चिकनी - चुपड़ी बातों का भी
पर-हित में लगे नेक-नीयतों का भी
अपनी दुनिया में मस्त स्वार्थियों का भी...
अज्ञानता,
मूर्खता, गरीबी, मासूमियत
ये सब पाप नहीं हैं,
जैसे प्रकृति-पशु-पक्षी के
कर्मों में पाप नहीं है,
पाप है वहाँ जहाँ ज्ञान है,
बुद्धि है, छल है यानी
जहाँ नीयत में खोट है,
दिखावा है - ढोंग है,
और ईश्वर बीच-बीच में
इसी पर करता चोट है...
कोरोना,
ये तो सिर्फ एक झांकी है
असली प्रलय तो बाकी है,
ईश्वर का ये है संकेत
चालाकों, मक्कारों, गिद्धों
अब भी समय है
हो जाओ सचेत...
- विशाल चर्चित