Saturday, August 6, 2011

मैं तुम्हें अब भी बहुत चाहता हूँ ....! - पंकज त्रिवेदी

मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारी उन आँखों को
जो तरसती थी मुझे देखने के लिए
और फैलती रहती थी दूर दूर तक से आती हुई
पगदंडी पर...
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे कानों को
जो उस पगदंडी से आते हुए मेरे कदमों की
आहट सुनकर खड़े हो जाते थे..........
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे उन हाथों को, जिस पर
चूडियाँ आपस में टकराकर भी खनकती हुई
छेड़ती हो प्यार के मधुर संगीत को...
जिस पर हम दोनों कभी गाते थे प्यार के तराने......
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे मन को
जो हमेशा सोचता रहता था मेरी खुशियों के लिए
आसपास के लोगों के लिए, दुखियों के लिए
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे उस धड़कते हुए ह्रदय को
जो हरपल खुद को छोड़कर भी धड़कता था मेरे लिए
परिवार और बच्चों के लिए.....
मैं
देखना चाहता हूँ उन साँसों को
जो दौड़ी आती हैं अंदर-बाहर
जैसे तुम दौड़ी आती थी मेरे घर आने के
इन्तजार में बावरी होकर.....
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे पैरों को
जो उम्र को भी थकाते हुए दौड़ते रहते थे
मेरी हर आवाज़ पर.......
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूँ तुम्हें
जिसने कुछ न कहकर भी सबकुछ किया था
खुद के सपनों को दफ़न करते हुए समर्पित करती थी
अपने अरमानों को.......
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूँ
ईसी घर में, खानाती चूड़ियों और पायल के साथ
उस मन की सोच और धड़कते दिल के साथ
उन खड़े कानों और फ़ैली हुई आँखों के साथ.....
क्योंकि-
मैं जनता हूँ, तुम अब भी चाहती हो मुझे
मेरी प्रत्येक मर्दाना हरकतों की मर्यादाओं के साथ
मगर मैं कुछ नहीं कर सकता दूर से तुम्हें चाहकर भी
मर्द हूँ मैं, तुम औरत...
इतना जरूर कहूंगा कि-
मैं तुम्हें अब भी बहुत चाहता हूँ ....!

2 comments:

deepti sharma said...

waah kya baat hai
achhi rachna

संजय भास्‍कर said...

बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना......!

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