मुफलिसी का मारा
जिन्दगी का सफर
होता है मुकाबिल जब
गर्दिशों की धूप से
तब सांसे भी
लगने लगती हैं बोझिल।
हताशा का घटाटोप जब
पराक्रम की किरणों पर
ग्रहण लगा देता है,तब
उम्मीद का सूरज बनकर
आती है मां,देती है ऊर्जा।
ढ़लती है रात
हताशा की
और पुनर्जीवित हो उठता हूं मैं।
हसरतों के बोशीदा लिबास में लिपटी
जिन्दगी का सफर
होता है मुकाबिल जब
गर्दिशों की धूप से
तब सांसे भी
लगने लगती हैं बोझिल।
हताशा का घटाटोप जब
पराक्रम की किरणों पर
ग्रहण लगा देता है,तब
उम्मीद का सूरज बनकर
आती है मां,देती है ऊर्जा।
ढ़लती है रात
हताशा की
और पुनर्जीवित हो उठता हूं मैं।
हसरतों के बोशीदा लिबास में लिपटी
अनपढ़, गांव में पली
धुल-धक्कड़ और धुवें से वास्ता रखने वाली माँ,
धुल-धक्कड़ और धुवें से वास्ता रखने वाली माँ,
जो न रुपयों का मोल जानती है और
न हिसाब रख पाती है किसी चीज का
जाने कहां से जुटाती है हिम्मत
और बेगरज,बेलौस
पहनाती है मुझे
साहस का ऐसा पैरहन
जो
रक्षाकवच बनकर
देता है जीवन को
शाश्वत सुरक्षा.
कुंवर प्रीतम
जो
रक्षाकवच बनकर
देता है जीवन को
शाश्वत सुरक्षा.
कुंवर प्रीतम
1 comment:
bahut achhi rachna
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