Friday, August 19, 2011

"छोटू"


चाय की दुकान पे,
एक बालक है रहता |
नौ-दस वर्षीय, सकुचाया हुआ-सा |

चाय पीने वालों का मुख निहारता रहता ;
पेंट भी है ढीला, गंजी भी फटेहाल |

ग्लास हाथ से छूटने का इंतज़ार करता रहता,
चाय ख़त्म होते ही झट ग्लास ले जाता,
धोकर वापस अपने मालिक को थमाता |
कभी पेंट ठीक करता,
कभी गंजी को उठाकर नाक पोंछा करता |
यही उसका कार्यक्रम, यही उसकी दिनचर्या,
बदले में शाम को मिलता, तीस या चालीस रुपैया |

एक दिन मैंने उसे बुलाया,
पास में बिठाया,
पूछा मैंने बाबू तेरा नाम क्या है?
असमंजस सा खड़ा उसने मुझे देखा,
ठठक कर बस एक ही शब्द कहा-
"छोटू"
इधर-उधर से वापस वो ग्लास समेटने लगा,
मैंने तब उसको पुनः पास बुलाया,
बोला, छोटू तुम कभी स्कूल क्यों नहीं जाते,
सीखने को मिलेगा कुछ पढ़ क्यों नहीं आते?


मालिक की तरफ देखा फिर मुझे देखकर बोला,
माँ रहती बीमार और पिता है शराबी,
काम नहीं करूंगा तो होगा बहुत खराबी;
पैसे लेकर जाता हूँ, तब खाना खाता हूँ,
बाप की प्यास मिटाने को शराब भी तो लता हूँ |
 सहज भाव से बोल के वो निकल गया,
पर नेत्र का कोना भींगा और दिल मेरा भर आया |

न जाने सरकार के कितने सारे योजना है,
पर जहाँ जरुरत है वहां तक वो कभी पंहुचा ही नहीं;
ऐसे ही कितने "छोटू" भारत में हैं बसते,
भारत हो रहा विकसित, फिर भी हम कहते |

क्या यही जनता का शासन है ?
क्या यही प्रजातंत्र है ?
क्या यही हमारी व्यवस्था है ?
क्या यही हमारा लोकतंत्र है ?

1 comment:

Neelkamal Vaishnaw said...

नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
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MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

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