Friday, August 5, 2011

एक नारी के रूप अनेक



कभी मात बन जनम ये देती,
कभी बहन बन दुलराती;
पत्नी बन कभी साथ निभाती,
कभी पुत्री बन इतराती;

कहने वाले अबला कहते,
पर भई इनका तेज तो देख;
काकी, दादी सब बनती ये,
एक नारी के रूप अनेक |

कभी शारदा बन गुण देती,
कभी लक्ष्मी बन धन देती;
कभी काली बन दुष्ट संहारती,
कभी सीता बन वर देती;

ममता भी ये, देवी भी ये,
नत करो सर इनको देख;
दुर्गा, चंडी सब बन जाती,
एक नारी के रूप अनेक |

कभी कृष्णा बन प्यास बुझाती,
यमुना बन निच्छल करती;
गंगा बन कभी पाप धुलाती,
सरयू बन निर्मल करती;

नदियाँ बन बहती जाती,
न रोक पाओगे बांध तो देख,
कावेरी भी, गोदावरी भी ये,
एक नारी के रूप अनेक |

कभी अश्रु बन नेत्र भिगोती,
कभी पुष्प बन मुस्काती;
कभी मेघ बन बरस हैं पड़ती,
कभी पवन बन उड़ जाती;

पल-पल व्याप्त कई रूप में ये,
न जीवन है बिन इनको देख;
जल भी ये, पावक भी ये,
एक नारी के रूप अनेक |

10 comments:

deepti sharma said...

yahi to naari hai
bahut sahi varnan kiya hai aapne
bahut khub

संजय भास्‍कर said...

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

Unknown said...

धन्यवाद दीप्ति जी..

Unknown said...

धन्यवाद् संजय जी..
साथ ही आपके भ्राता को जन्म दिन की शुभकामनाएं |

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत उम्दा

Udan Tashtari said...

बेहतरीन चित्रण....

jagbir rathee said...

bhut khoob h

Unknown said...

Dhanyawad Sanjay ji..

Unknown said...

Dhanyawad Udan Tashtari ji..

Unknown said...

Aapka dhanyawad Jagbir ji..

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