दुनियादारी, झूठ फरेबी, हमसे क्यूं करते बोलो
हममें ही यह सब होता तो,भूखे क्यों मरते बोलो
तुम तो बैठ गए मंदिर में,क्या कहने श्री विग्रह के
सवामणि की मौज तुम्हारी,हम रोटी पे मरते बोलो
हम दुखियन के घर-आंगन में,दुख दुश्वारी पसरी और
सेठों के भागोत बंचाकर,सब परेशानी हरते बोलो
वनवासी प्रभु राम भए,औ सन्त विराजें जंगल में
सेठों के एसी कमरे में, शंकराचार्य चौमासे करते बोलो
गोमाता के पोषक होकर,कहां खो गए कृष्ण कन्हैया
भूखी, कटतीं गोमाताएं, नेता चारा चरते बोलो
बेर कभी खाए सबरी के, और सुदामा के मन भाए
आज मगर क्यूं पांव तुम्हारे,धरती पर ना धरते बोलो
कुंवर प्रीतम
1 comment:
Bahut badhiya rachna..
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