Friday, September 2, 2011

जज़्बात-ए-ईश्क

कुछ सुन लो या कुछ सुना दो मुझको,
गुमसुम रहकर न यूँ सजा दो मुझको,
जान से भी प्यारी है तेरी ये मुस्कुराहट,
मुस्कुरा कर थोड़ा सा हँसा दो मुझको |


आँखों से ही कुछ सीखा दो मुझको,
थोड़ी सी खुशी ही दिखा दो मुझको,
तेरी खुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं है,
अपनो की सूची में लिखा दो मुझको |


पलकें उठा के एक नज़र जरा दो मुझको,
ज़न्नत के दरश अब करा दो मुझको,
तेरी जीत में ही छुपी है मेरे जीतने की खुशी,
नैनों की लड़ाई में थोड़ा हरा दो मुझको |

4 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut hi badiya prastuti

kiran said...

kya yaar bahut mast likti hu tum. hum to aapke kayal ho gaye hai.......

Kailash Sharma said...

बहूत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर रचना । बधाई

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