Thursday, September 22, 2011


क्यों कुंठा से घिरे हुए हो,क्या रक्खा है क्रन्दन में
अपनी भाषा बोलो प्यारे,क्या रक्खा है लन्दन में
अंग्रेजों की चाट के जूठन, क्या पाओगे बोलो जी
भारतवर्ष का कण-कण महके,जैसे खुशबू चन्दन में
कुंवर प्रीतम


दुःख,दुश्वारी और गरीबी से जिनका नाता नहीं
सब कुछ हो सकते मगर जीवन के ज्ञाता नहीं
दौलत और शोहरत वाले सब होंगे रुतबेदार मगर
तौबा तौबा ऐसा जीवन प्रीतम को भाता नहीं
कुंवर प्रीतम

1 comment:

Anonymous said...

gud one
keep writing

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...