Saturday, September 3, 2011

काव्य का संसार


अनुपम, अक्षय होता है ये काव्य का संसार,
अखिल जगत में अकथ, अकाय और निराकार |


साहित्य की यह विधा अनूठी, पद्य भी कहाय,
हृदय से उत्थित, सरस शब्दों में उकेरा जाय |


भावों की ये मंजूषा, मञ्जीर, मधुर मानिक,
मुतक्का साहित्य का दृढ, मनन करो तनिक |


अमरसरित सी पावन, जनश्रुत ये अपार,
अद्भूत, असम, अनुरक्त है ये काव्य का संसार |


(शब्दार्थ: मञ्जीर=मनोहर, मुतक्का=खम्भा,
अमरसरित=गंगा, जनश्रुत=प्रसिद्द, अनुरक्त=प्रेम युक्त )

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

इस बेहतरीन और प्यारी रचना के लिए बधाई!

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