Friday, September 16, 2011

कुंवर प्रीतम के मुक्तक


रात तन्हाई में गुजरी और दिन में सबके पहरे थे
दिल पिंजरे में कैद पड़ा था,पहरे इतने गहरे थे
कतरा-कतरा दर्द जिगर का,आब-ए-चश्म हुआ फिर भी
नमक घाव पर देने वाले,पत्थर-पत्थर चेहरे थे
कुंवर प्रीतम


मुद्दत की चाहतों का आज इम्तिहान है
मैं भी परेशान और वो भी परेशान है
हर सिम्त पहरे बिठा दिए रकीबों ने क्या करें
जमीं तो जमीं, आसमां भी निगहबान है
कुंवर प्रीतम

3 comments:

केवल राम said...

वाह क्या बात है ...दिल के जज्बात उभर आये लेखनी से ...!

डॉ .अनुराग said...

dilchasp....

Ankit pandey said...

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर

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