रात तन्हाई में गुजरी और दिन में सबके पहरे थे
दिल पिंजरे में कैद पड़ा था,पहरे इतने गहरे थे
कतरा-कतरा दर्द जिगर का,आब-ए-चश्म हुआ फिर भी
नमक घाव पर देने वाले,पत्थर-पत्थर चेहरे थे
कुंवर प्रीतम
मुद्दत की चाहतों का आज इम्तिहान है
मैं भी परेशान और वो भी परेशान है
हर सिम्त पहरे बिठा दिए रकीबों ने क्या करें
जमीं तो जमीं, आसमां भी निगहबान है
कुंवर प्रीतम
3 comments:
वाह क्या बात है ...दिल के जज्बात उभर आये लेखनी से ...!
dilchasp....
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर
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