Friday, October 14, 2011


जागता है रात को अब कौन किसके वास्ते
मंजिलें सब की जुदा और सबके अपने रास्ते
मुद्दतों जिनके ख्यालों में जगे हम रात भर
चैन से वो से रहे है अब किसी के वास्ते
कुंवर प्रीतम


जख्मों की जिगर से है ये कैसी जुगलबन्दी
है दर्द मेरे दिल में,और वो है बेदर्दी
आंखों की नमी को भी क्यूं समझ न पाया वो
हाय,आज मुहाफिज ने ही जुल्म की हद कर दी
कुंवर प्रीतम

2 comments:

Asha Joglekar said...

बहुत दर्दभरी दिल को छू लेने वाली ये रचनाएं प्रस्तुत करने का आभार ।

deepti sharma said...

bahut hi sunder rachna

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