Tuesday, December 27, 2011

चाहा था उन्हें




कसूर इतना था कि चाहा था उन्हें
दिल में बसाया था उन्हें कि
मुश्किल में साथ निभायेगें
ऐसा साथी माना था उन्हें |
राहों में मेरे साथ चले जो
दुनिया से जुदा जाना था उन्हें
बिताती हर लम्हा उनके साथ
यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें
किस तरह इन आँखों ने
दिल कि सुन सदा के लिए
उस खुदा से माँगा था उन्हें
इसी तरह मैंने खामोश रह
अपना बनाना चाहा था उन्हें |
- दीप्ति शर्मा

2 comments:

vidya said...

बहुत सुन्दर.....

Unknown said...

सुन्दर रचना दीप्ति जी |

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