Wednesday, January 4, 2012

अब क्या करना है |




इत्मिनान से जी लूँ
लिख लूँ कुछ नगमें
जो ज़ज्बात से भरें हों
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

गढ़ लूँ कुछ नये आयाम
सतत बढूँ दीर्घ गूंज से
ले मैं रुख पर नकाब
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

स्मरण कर उन्मुक्त स्वर
स्वछन्द गगन में टहलूं
सहजभाव से स्मृतियों में
कुछ ख्यालों को छुला लूँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

महसूस कर लूँ एहसास
तेरे यहाँ आने का
बरस जाये बरखा
सावन भर आये और
तुझसे मिलन हो जाएँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
--- दीप्ति शर्मा


7 comments:

vidya said...

बहुत सुन्दर...
सच है, अपनी प्राथमिकतायें तय करना ज़रुरी है जीवन में..
अच्छी कविता.

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-749:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

deepti sharma said...

sukriya vidya ji
sukriya दिलबाग विर्क ji

Chartered Vyas said...

अच्छी रचना लगी ..........काफी दिनों के बाद अंतर्मन की दशा को व्यक्त करने वाली रचना पढ़ी है | स्रजनात्मकता का पुट लिए है ये .............इसके लिए बधाई !

deepti sharma said...

sukriya vyas ji

Kailash Sharma said...

बहत सुन्दर प्रस्तुति...

deepti sharma said...

sukriya kailash ji

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