इत्मिनान से जी लूँ
लिख लूँ कुछ नगमें
जो ज़ज्बात से भरें हों
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
गढ़ लूँ कुछ नये आयाम
सतत बढूँ दीर्घ गूंज से
ले मैं रुख पर नकाब
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
स्मरण कर उन्मुक्त स्वर
स्वछन्द गगन में टहलूं
सहजभाव से स्मृतियों में
कुछ ख्यालों को छुला लूँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
महसूस कर लूँ एहसास
तेरे यहाँ आने का
बरस जाये बरखा
सावन भर आये और
तुझसे मिलन हो जाएँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
--- दीप्ति शर्मा
7 comments:
बहुत सुन्दर...
सच है, अपनी प्राथमिकतायें तय करना ज़रुरी है जीवन में..
अच्छी कविता.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-749:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
sukriya vidya ji
sukriya दिलबाग विर्क ji
अच्छी रचना लगी ..........काफी दिनों के बाद अंतर्मन की दशा को व्यक्त करने वाली रचना पढ़ी है | स्रजनात्मकता का पुट लिए है ये .............इसके लिए बधाई !
sukriya vyas ji
बहत सुन्दर प्रस्तुति...
sukriya kailash ji
Post a Comment