Saturday, February 11, 2012

मौत

भयावह रूप ले वो क्यूँ,
इस तरह जिद् पर अड़ी है
बड़ी क्रुर दृष्टि से देख रही मुझे
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

ये देख खुश हूँ मैं अपनो के साथ
जाने क्या सोच रही है
कुछ अजीब सी मुद्रा में
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

चली जाऊंगी मैं साथ उसके
नहीं डर है मुझे उसका
फिर क्यों वो संशय में पड़ी है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

कभी गुस्से में झल्ला रही है
कभी हौले हौले मुस्कुरा रही है
इस तरह मुझे वो फँसा रही है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

देख मेरे अपनों की ताकत
और मेरे हौसलों की उड़ान
से वो सकपका रही है
देखो मौत मुझसे दूर जा पड़ी है ।

ले जाना चाहती थी साथ मुझे
अब वो मुझसे दूर खड़ी है
मेरे अपनों के प्यार से वो
छोड़ मुझे मुझसे दूर चली है ।
© दीप्ति शर्मा

4 comments:

vidya said...

प्यार के आगे मौत भी हार मान लेती है...
ऐसे ही तो सावित्री ने जीत हासिल की थी..
सुन्दर रचना...

deepti sharma said...

aapka aabhar vidya ji

प्रवीण पाण्डेय said...

एक दिन तो सबके पास ही आनी है वह

ज्योति सिंह said...

ant behad khoobsurat hai .

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