आधुनिक अट्टालिका में तीस माले
तीसवें माले पे जालिम एक दफ्तर
खूबसूरती है बला की इसके अन्दर
जैसे कमसिन एक बाला हो ये दफ्तर
दस बजे से शाम के कब छह बजे
भूल जाओगे कभी जो आए दफ्तर
गेट पर मुच्छड़ मिलेगा, डरना मत
पार करते ही दिखेगी मैडमे-दफ्तर
क्या कहर ढाती है तंग लिबास में
हर कोई फिसला, जो आया होगा दफ्तर
नौजवानों की है लम्बी फौज,पर
गप्पें ज्यादा, काम कम करता है दफ्तर
बॉस को सर-सर कहें पर जब कभी
टूअर पर जाएं वो, सोता है ये दफ्तर
बैंक के कर्जों की लम्बी देनदारी
पर हमेशा मस्ती में रहता है दफ्तर
सीए, सीएस, एमबीए की है खटाल
जो यहां आया, फंसा लेता है दफ्तर
यार अप्पन, भूल से कल आ गए थे
हो गए निढाल, जो देखा ये दफ्तर
टांग सबने तोड़ डाली हिन्दी की
जूठनें अंग्रेज की खाता है दफ्तर
-कुंवर प्रीतम
2 comments:
दफ्तर का बखान बहुत ढंग से किया है।
shandaar prastuti, badhai
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