क्यों कभी कोई ख़ामोशी
टूटती नज़र नहीं आती
मेरे अहसासों के दामन में
दबी जुबां से क्यूँ कोई
ख़ुशी नज़र नहीं आती
वक्त-ए-दुआ देगा कोई
इस आसार में जीती मैं
पर जीने की कोई उम्मीद
दिल में नज़र नहीं आती
आगे तो बढ़ना चाहती हूँ मैं पर
क्यूँ मुझे आगे बढ़ने की कोई
वजह नज़र नहीं आती
क्यूँ मेरे लिये किसी की
हँसी नज़र नहीं आती ।
© दीप्ति शर्मा
2 comments:
खामोशी भी खामोश है..
जी प्रवीण जी
शुक्रिया
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