तुम भी यहीं कहीं हो, हम भी यहीं कहीं हैं
दिखते नहीं मगर हम दोनों यहीं कहीं हैं
उल्फत का मामला है,लेकिन है खूब उलझन
कलियां मचल रही हैं, भंवरा यहीं कहीं है
दिन थे कयामती अब रातें सुलग रहीं हैं
करवट ये कह रही वो शायद यहीं कहीं है
आता है ख्वाब में पर, हासिल मुझे नहीं है
एहसास कह रहा वो, बेशक यहीं कहीं है
शीतल पवन के झोंको, अब तो मुझे मिला दो
मुंतजिर हूं कबसे प्रियतम मेरा यहीं कहीं है
तन्हा चलूंगा कब तक, रस्ते बड़े कठिन हैं
संगदिल अगर मिले तो मंजिल यहीं कहीं है
- कुंवर प्रीतम
15.4.2012
1 comment:
साथ किसी का होता काश,
सिमट गया होता आकाश।
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