Sunday, May 13, 2012

माँ


जब पहला आखर सीखा मैंने
लिखा बड़ी ही उत्सुकता से
हाथ पकड़ लिखना सिखलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

अँगुली पकड़ चलना सिखलाया
चाल चलन का भेद बताया
संस्कारों का दीप जलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

जब मैं रोती तो तू भी रो जाती
साथ में मेरे हँसती और हँसाती
मुझे दुनिया का पाठ सिखाती
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

खुद भूखा रह मुझे खिलाया
रात भर जगकर मुझे सुलाया
हालातों से लड़ना तूने सिखाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
© दीप्ति शर्मा

3 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

maa ko saadar naman

प्रवीण पाण्डेय said...

वह सब कुछ सिखलाती है..

दिगम्बर नासवा said...

कदम कदम पे माँ ही साथ देती है ... मार्गदर्शन करती है ... सुन्दर रचना है ..

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