यह पंक्तियाँ एक प्रयास है गर्भ में पल रहे स्त्री भ्रूण के मन की बात को कहने का -
बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग से गहरा नाता है
यूं तो दुनिया मुझ से चलती
मुझ पर ही खंजर चल जाता है
माँ बचा ले मुझको तेरी
गोद में पलना भाता है
आँचल की छांव मुझे भी दे दे
क्यों तुझे समझ न आता है ?
बड़ी बड़ी बातों मे सबकी
देवी, लक्ष्मी, सरस्वती हूँ
हूँ पूजनीया नौ दुर्गों में
मैं फिर भी त्यागी जाती हूँ
है बहुत अनिश्चित मेरा भाग
दुर्भाग मानव जात तुम सुन लो
खंजर है अधिकार तुम्हारा
बस भविष्य के अंत को चुन लो।
©यशवन्त माथुर©
1 comment:
बहुत सुन्दर यशवंत....
गहन भाव पिरोये हैं इस रचना में....
सस्नेह
अनु दी
Post a Comment