कभी बांसुरी बजाकर, कभी गीत गुनगुनाकर
पुष्कर हो जैसे प्यारा, जिसमें कभी नहाकर
जादू सा कर रहे तुम, मेरे प्रेम के दिवाकर
कहां जाके छुप गए हो, मझधार में डूबा कर
-कुंवर प्रीतम
31-8-2012
जितने करीब आए, उतने हो दूर अब तुम
ये क्या नशा चढ़ा है, जिसमें हो चूर अब तुम
आओ पिलाएंगे हम अमृत की चन्द बूंदें
पहले तो तुम नहीं थे, जितने हो क्रूर अब तुम
-कुंवर प्रीतम
31 अगस्त 2012
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