दर्द-ए-दिल समझ के कोई अनजान बैठा है ,
लूटने वाला यहाँ बनके महान बैठा है ,
लाश है कि हिलने का नाम नहीं ले रही ,
और जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है |
नाराज सा देखो ये सारा जहान बैठा है,
मिट्टी का माधो ले सबकी कमान बैठा है,
दिख रहा मुकद्दर बस खामोशियों भरा,
बादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है |
ज़मीरों का भी कोई खोला दुकान बैठा है,
इंसानों के कत्ले-आम को इंसान बैठा है,
चंद सिक्कों से तौले जा रहे हैं लोग अब,
सबको बनाने वाला खुद ऊपर हैरान बैठा है |
गमगीन-सा आज का हर नौजवान बैठा है,
छोड़ कर पंक्षी आज अपनी उड़ान बैठा है,
बड़ा ही रहस्यमय-सा है आज का मंजर,
उत्साह का सागर ही खुद परेशान बैठा है |
भक्त सत्य का आज खाली मकान बैठा है,
भ्रष्ट नाली का कीड़ा बना तुर्रम खान बैठा है,
जीवित लाशों के ढेर पे शहँशाह-सा बैठा,
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
6 comments:
जीवन परीक्षा श्रंखला है..
कल 15/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
पिछली टिप्पणी मे तारीख की गलत सूचना देने के लिये खेद है
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कल 16/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
प्रतीक्षा में हर कोई बैठा है ...
कभी तो ये इंतज़ार खत्म होगा ... बहुत खूब ..
सत्य को कहती अच्छी रचना
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