अनकही बातें
खामोश सी बातें
कभी कभी उतावली होती हैं
भीतर से
बाहर आने को
दबी हुई कह जाने को
पर अनकही
अनकही ही रह जाती है
कभी साँसों के उखड़ने की
मजबूरी में
और कभी
इस उम्मीद में
कि
समझने वाले ने
झांक ही लिया होगा
मन के भीतर।
©यशवन्त माथुर©
1 comment:
न जाने कितनी बातें अनकही रह जाती हैं, इस आस में कि सामने वाला समझ गया होगा।
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