Friday, February 22, 2013

अनकही बातें

अनकही बातें
खामोश सी बातें
कभी कभी उतावली होती हैं
भीतर से
बाहर आने को
दबी हुई कह जाने को
पर अनकही
अनकही ही रह जाती है
कभी साँसों के उखड़ने की
मजबूरी में
और कभी
इस उम्मीद में
कि
समझने वाले ने
झांक ही लिया होगा
मन के भीतर।
©यशवन्त माथुर©

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

न जाने कितनी बातें अनकही रह जाती हैं, इस आस में कि सामने वाला समझ गया होगा।

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