Monday, February 11, 2013

पेड़ के हरे पत्ते


देखा था कल गिरते
पेड़ के हरे पत्तों को
ना आँधी आयी कोई
ना पतझड़ का मौसम था
बस तड़पते सहते
रोते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
आगे बढ़ना था उनको
विश्वास के साथ
कुछ पल जीने का
साथ ही तो माँगा था
पर तोड़ दिया उसने
जिससे साथ चल
जीने का सहारा माँगा था
मुरझाते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
किसी की चाहत के लिये
डाल से अलग हो
जलते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
©दीप्ति शर्मा


LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...