लू के गरम थपेड़ों में
कहीं पेड़ों की छांह नहीं
सूखते प्यासे हलक तरसते
कहीं प्याऊ की राह नहीं
पुण्य कमाने की लोगों में
अब दिखती कोई चाह नहीं
सड़क किनारे के मॉलों में
फटेहालों की परवाह नहीं
'वाटर पार्कों' में पानी बहता
बिन धुली कारों की शान नहीं
कंक्रीट की छतों पे टंकी रिसती
बिन एसी -कूलर मकान नहीं
लिखना कहना काम है अपना
समझने का कोई दबाव नहीं
हम तो पीते रोज़ ही शर्बत
फुटपाथियों का कोई भाव नहीं
लू के गरम थपेड़ों में
कहीं पेड़ों की छांव नहीं
गरम पसीना अपना साथी
जीवन जीना आसान नहीं
~यशवन्त माथुर©
1 comment:
aaj ke bharat ka sachh bakhoobi bayan kiya apne.. badhai
Post a Comment