Tuesday, September 3, 2013

उफ़...
देह की टूटन
तपता बदन
कसैली जीभ
और वो पोटला
नीम हकीमों का
मुँह बिचकाकर जो खा भी लूँ
तो वो
हिदायती मिज़ाज़ लोगों का
उफ़..
अब इस बुखार में
थकी देह की सुनु
या खुराक से लडूं
या हिदायती लोगों से...
उफ़...
© दीप्ति शर्मा

2 comments:

Madan Mohan Saxena said...

उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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वाणी गीत said...

बुखार से लड़ो :)

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