Sunday, April 20, 2014

सपना

कविता


सपना
घुप्प अँधेरा पसरा  है
बाहर दूर खलियानों से
भीतर के कोनों तक ।
एका एक बारिस
और छत से गिरता पानी
बिजली की गडगडाहट भी
डरा रही है ।
दियासलाई के डिब्बे में भी
सिर्फ एक दियासलाई ,
उससे भी लालटेन जला दी ,
वो भी भप भप कर
जलती दिख रही है ,
शायद तेल कम है ।
तभी पास में रखे उजले डिब्बे
की तरफ निगाह गयी
जो अपनी रौशनी से जगमगा रहा है
उसे हाथ में उठा लिया ,
जिसमें जुगनू आपस में भिड रहे हैं ,
जो मैंने एक एक कर जमा किये
जैसे कह रहे हों
मैं तुझसे ज्यादा चमकता हूँ
और इस भिंडत में ,
और ज्यादा रौशन हो रहे हैं ।
उन्हें देखते हुए सब भूल
दिवार पर सिर टिका बैठ गयी
तभी तेज़ आँधी और तुफान आने से
मेरे हाथों से , वो जुगनुओं का डिब्बा छुट गया
जुगनू छितरा गये
बिखर गये इधर उधर
मैं हतप्रत बस देखती रही
इतना अँधेरा !!!!
अब लालटेन भी बुझ चुकी है
पेड उखड गये हैं ,
पौधे टूट गये हैं
मेरी छत भी तो उड गयी है
उस तूफान में सब बिखर गया ।
तभी दूर से आती हल्की रौशनी
अब और तेज़ होने लगी
हर तरफ फैल गयी
और मैं मलते देखती हूँ
कि सवेरा हो गया
वो आँधी , बारिस , अँधेरा
सब पीछे छूट गया
वो मेरा भयावह सपना
अब टूट गया ।
दीप्ति शर्मा

5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना मंगलवार 22 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

रश्मि शर्मा said...

बढ़ि‍या चि‍त्रण...

रश्मि शर्मा said...

बढ़ि‍या चि‍त्रण...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सुंदर शब्दो का सपना
शुभकामनायें !!

संजय भास्‍कर said...

मन के भाव को शब्दों में लिखा है ...

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