Sunday, December 7, 2014

मुट्ठियाँ


बंद मुट्ठी के बीचों - बीच
एकत्र किये स्मृतियों के चिन्ह
कितने सुन्दर जान पड़ रहे हैं
रात के चादर की स्याह
रंग में डूबा हर एक अक्षर
उन स्मृतियों का
निकल रहा है मुट्ठी की ढीली पकड़ से
मैं मुट्ठियों को बंद करती
खुले बालों के साथ
उन स्मृतियों को समेट रही हूँ
वहीं दूर से आती फीकी चाँदनी
धीरे - धीरे तेज होकर
स्मृतियों को देदीप्यमान कर
आज्ञा दे रही हैं
खुले वातावरण में विचरो ,
मुट्ठियों की कैद से बाहर
और ऐलान कर दो
तुम दीप्ति हो, प्रकाशमय हो
बस यूँ ही धीरे - धीरे
मेरी मुट्ठियाँ खुल गयीं
और आजाद हो गयीं स्मृतियाँ
सदा के लिये
©दीप्ति शर्मा

No comments:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...