Tuesday, August 25, 2015

झगड़ा धूल ये मत भूल, धूल से गंदे नहीं होते फूल...


मैं मोनू - तू सोनू
मैं और तू हैं 
पक्के दोस्त,
अपना हो गया झगड़ा
वो भी एकदम तगड़ा,
तूने मुझे धकेला
मैं कैसे गिरता अकेला,
मैंने फेका कीचड़
तूने बोला फटीचर,
तूने मारा घूंसा
मैंने मारा ठूंसा,
तो अब तू 
क्यों है गुस्सा,
गुस्सा थूक
अब मत चूक,
मुझको लग गई
जोर की भूख,
मेरे यार 
तू होशियार,
ले के आ जा
पराठे चार,
मिल के खायेंगे
उधम मचायेंगे,
जलनेवाले
जल जल जायेंगे,
झगड़ा धूल
ये मत भूल,
धूल से गंदे 
नहीं होते फूल...

- विशाल चर्चित

1 comment:

Shanti Garg said...

सुन्दर व सार्थक रचना ..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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