रास्ते पर थके पाँव
चली जा रही हूँ
उस ऊँचे टीले को देखती
जहाँ धीरे से उतरती
गर्भवती महिला पति को थामे
फिर तभी तेज रफ्तार
भागती गाड़ियाँ
और वहीं सामने स्कूल
जिसका छूट्टी का घण्टा बज रहा है
स्कूल से बच्चों का तेजी से निकल
सड़क पार करना
थककर बगल के चबूतरे पर बैठी
सोच रही हूँ
सब व्यस्त हैं
सबकी अपनी दिनचर्या
और मेरी दिनचर्या
सबको यूँ ही देखते रहना
नहीं!
या चलते जाना
शायद ये भी नहीं!
जीवन में अनुभव बटोरना
हाँ यह संभव है
और बुजुर्ग होने पर कहना
अनुभव है मुझमें भी बरसों का
यूँ ही बाल सफेद नहीं हुए
सामने से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करना
और कहना मेरी बात सुनो
ना सुने जाने पर
फिर खो जाना उन्हीं दौड़ती सड़कों पर
या फिर चल पड़ना थके पाँव
जीवन को समझने
या खुद को समझाने।
Sunday, November 29, 2015
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