सौगन्ध महात्मा गांधी की खाकर ये कलम उठाता हूं
है साठ साल में क्या गुजरी,ये हाल सभी को सुनाता हूं
जुल्मी गोरों से हुए मुकाबिल,भारत मां को आजाद किया
सोने की चिड़िया है भारत,सारे जग में शंखनाद किया
आजाद वतन अपना है,अब अपनी धरती-अपनी भाषा
कितने सपने देखे सबने,थी खिली-खिली सबकी आशा
पर आज कलम रोते रोते है विवश हुयी सच कहने को
दुःख साठ साल तक बहुत सहा,अब और बचा क्या सहने को
चीख रहा भारत कुटिया में,नेताओं की मस्ती है
उनके हैं महंगे लाख जतन,पर जान हमारी सस्ती है
हर सांस यहां अब घुटन भरी,चौका-चूल्हा लाचारी में
गांव-गरीब-मजदूर-किसान,हैं सबके सब बीमारी में
जिन खेतों की धरा कभी,उगला करतीं हीरे-मोती
उन खेतों में भारत मां अब बेबस और भूखी सोती
दिल्ली को फिक्र कहां प्रीतम, उसके तो गोरखधंन्धे हैं
देख रहे मंजर सारा,पर बनते आंखे से अन्धे हैं
ईमान बेचने वाले अब संसद में लाए जाते हैं
जेलों में जिनकी जगह बनी,संसद में पाए जाते हैं
घोटालों का कुम्भ यहां अब बारहमासी त्योहार है
संसद भी अपनी बनी फकत,हाट,मॉल बाजार है
कुंवर प्रीतम
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