Monday, August 8, 2011

अरमानों का टकराव


अरमानों का टकराव


अंतस में उफनते
अरमानों का टकराव
हर रोज होता है
हालात से
और कुरुक्षेत्र बना
हृदयस्थल फिर
ढूंढने लगता है
उसी कृष्ण को
जिसने दिया था संदेश
कर्मण्येवाधिकारस्ते का।
गीता में कहे बोल
गूंजने लगते हैं
प्रेरणा बनकर
देते हैं पाथेय
और समा जाते हैं
शनैः शनैः
हृदय में
फिर दस्तक देते हैं
आत्मा के आंगन में
अंततोगत्वा
उफनते अरमानों का टकराव
पा जाता है समाधान
और निकल पड़ता है
कर्म की पगडंडी पर।
कुंवर प्रीतम

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