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Monday, August 22, 2011
मुक्तक
जमाने में बतौर-ए-खास जो दिखते-दिखाते हैं
चले आएं, उन्हें हम आज इक दर्पण दिखाते हैं
ऋणे कृत्वा,घृतम पीवेत पर रूतबा बनाते जो
पुरखों की हवेली का उन्हें मंजर दिखाते हैं
कुंवर प्रीतम
1 comment:
मुकेश कुमार सिन्हा
said...
bahut khub!!
August 23, 2011 at 11:15 AM
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1 comment:
bahut khub!!
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