Monday, September 12, 2011

अस्तित्व की तलास


                                              
दुनिया में रह मुझे उन तमाम 
हस्तियों को पहचानना ही पड़ा |
हर नए सफ़र की मुश्किलों को
उन उलझनों को अपना समझ 
दिल से उन्हें मानना ही पड़ा |
जहाँ में खोये हुए अपने वजूद को
इत्मिनान से तलाशना ही पड़ा |
अपने कुछ उसूलों की खातिर 
उस अस्तित्व को खोजते हुए
मुझे अपने आप को जानना ही पड़ा |
- दीप्ति शर्मा 

2 comments:

Neelkamal Vaishnaw said...

Deepti jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
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Dr. Zakir Ali Rajnish said...

दीप्ति जी, मन को छू जाने वाले भाव अपने गजल में पिरोए हैं। बधाई।

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कब तक ढ़ोना है मम्‍मी, यह बस्‍ते का भार?
आओ लल्‍लू, आओ पलल्‍लू, सुनलो नई कहानी।

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