दुनिया में रह मुझे उन तमाम
हस्तियों को पहचानना ही पड़ा |
हर नए सफ़र की मुश्किलों को
उन उलझनों को अपना समझ
दिल से उन्हें मानना ही पड़ा |
जहाँ में खोये हुए अपने वजूद को
इत्मिनान से तलाशना ही पड़ा |
अपने कुछ उसूलों की खातिर
उस अस्तित्व को खोजते हुए
मुझे अपने आप को जानना ही पड़ा |
- दीप्ति शर्मा
2 comments:
Deepti jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
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दीप्ति जी, मन को छू जाने वाले भाव अपने गजल में पिरोए हैं। बधाई।
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कब तक ढ़ोना है मम्मी, यह बस्ते का भार?
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुनलो नई कहानी।
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