Thursday, September 29, 2011


हाय, शहर का जीवन कैसा दुर्गम और दुश्वार है
कदम कदम पे पंगा है,हर शख्स यहां लाचार है
दो पैसे की खातिर बुनते झूठ का तानाबाना सब
नहीं किसी से नाता भइया,सब रिश्ता बाजार है
कुंवर प्रीतम

No comments:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...