Thursday, October 20, 2011

दुश्मनों को एहसास-ए-मुहब्बत न बख्शो

दुश्मनों को एहसास-ए-मुहब्बत न बख्शो
इतनी दरियादिली अच्छी नहीं होती
सिर्फ अपने ही काम आते हैं मुसीबत में
उनकी नफरत मुहब्बत से कम नहीं होती.....

2 comments:

Dr.NISHA MAHARANA said...

बहुत बढ़िया.

Anonymous said...

किसी मुक़म्मल शायर ने कहा था कि जीत ली जाती है हर जंग बिना तलवारों और कटार के...क्या टेकेगा घुटने दुश्मन पुरज़ोर मोहब्बत के वार के....पर आप की चन्द लाईनों ने इस अहसास के माएने ही बदल दिये...अच्छी कोशिश.......

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