Sunday, January 15, 2012

ये मेरे कुछ शेर.....


चलो तुम मिल गए मुझको खुदा का शुक्र है यारा 
नहीं तो दिल-मुहब्बत-आशिकी ये कौन समझाता 
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ठहाके गूंजने दो मत दखल दो आ के तुम 'चर्चित'
तुम्हारी मौत पर मायूश थे कल ये सभी अपने 
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आज की रात है मातम, ज़रा इसका मज़ा ले लो 
सुबह कल किस ख़ुशी में क्या पता हँसना पड़े तुमको
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आज की रात है मातम, ज़रा इसका मज़ा ले लो 
सुबह कल किस ख़ुशी में क्या पता हँसना पड़े तुमको 
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दिल फकीरी की तरफ अब कुछ कदम और बढ़ चला है
कहते थे अपना जिसे हम, गैरों सा कुनबा हो चला है.... 
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कोई जब दिल को छू दे तो कलम चल पड़ती है यूं ही
शुरू हो जाता है फिर दौर कई ताज़ा फसानों का...... 
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यहाँ पे ग़म बहुत अक्सर रुलाने को जमाने में
कहाँ बहलायें दिल जाकर जहां देखो वहीँ मातम.... 
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कभी किसी का बहुत ख़ास-ओ-अज़ीज़ न बन 
कि बहुत मिठास कई बीमारियाँ ले आती है... 
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ये चांदमारी तुम्हारी, आफत में जां हमारी
निशाना लगे कि चूके, मौत पक्की हमारी 
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अब इसको कहें मुहब्बत या एक महज़ फितूर
उसने वो पढ़ लिया मैंने लिखा नहीं........ 
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ख़्वाबों में भी कभी हम बेवफा न थे
फिर भी न जाने क्यों वो हैं खफा - खफा..... 
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सुना कर दास्तान - ए - ग़म अगर राहत मिले तुमको
सुनाते जाओ यूं ही तुम कि जब तक सांसें हैं मेरी..... 
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इस दिल में आते - जाते हैं अक्सर तमाम लोग
पर जिस तरह से तुम गए हो जाया नहीं जाता 
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करते हैं कई लोग किताबी बातें तो बहुत अच्छी 
पर मैदान छोड़ देते हैं जब हकीकत से पड़े पाला 
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रिश्तों को समझने में कई खा जातें हैं चक्कर
कि जिनको शूरमा कहते कई मोर्चों पे लोग अक्सर 
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शर्म आती नहीं तुमको यूं मुझको बेवफा कहते
खड़े हैं मोड़ पर अब भी जहां पे तुमने छोड़ा था 
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बहुत ज्यादा तकल्लुफ क्यों अगर अपना कहा तुमने
पकड़ लो रास्ता सीधा जो दिल के इस तरफ आता.... 
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आशिकी में होशियारी आम होती जा रही
यार की आँखों अब चश्में से देखा जा रहा 
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आपको देखे से बढती आँखों में कुछ रौशनी
बेवजह देखा करें अब इतने हम पागल नहीं 
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दिखती कहाँ हैं आज कल इतनी दरियादिली
अब तो एहसान बाद में पहले जताया जाता है 
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उन्हें गुमान है अपने हुस्न पर हमें प्यारी है खुद्दारी
उन्हें महफ़िल का चस्का है हमें यारी-ओ-दिलदारी 
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कोई इंसां हो तो बात करें एक पत्थर से उम्मीद नहीं
जो शोर बहुत करता है पर दिल जैसी कोई चीज़ नहीं 
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जब ग़मों का दौर हो तो हौसला ज़रूरी है
जिस तरह से तैरना होता है दरिया के खिलाफ
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अच्छा है सताती हैं मेरी यादें तुम्हें अक्सर
चलो इसी बहाने दिल से आवाज़ तो आती है 
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वो आदतन चलाता है अपनी मर्ज़ी हम आदतन रूठ जाते हैं
यूं इस तरह उससे दिल के तार अक्सर जुड़ते हैं छूट जाते हैं 
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ये कोई मामूली नहीं दर्द - ए - इश्क है
आते - आते आया है, जाते - जाते जाएगा....
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तुम घबराया न करो यूं उसके जाने से ' चर्चित '
वो बार - बार जाता है बार - बार आने के लिए 
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नहीं कोई घाव है ऐसा कि जिसको भर न पाए वक़्त
सही मरहम मिले तो ज़िन्दगी फिर से चहकती है.... 
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लगता है तुम्हें शौक है पहेलियाँ बुझाने का
वर्ना इस तरह से दर्द बयाँ कौन करता है 
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जुड़े हों दिल इरादे हों तो मुश्किल कुछ नहीं चर्चित
जो रूठा है वो मानेगा अगर तबियत से कोशिश हो 
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क्या मज़ा है इश्क में जो अगर रूठें न वो
उनके तीखे तेवरों का लुत्फ़ ही कुछ और है 
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बहुत गहरी उदासी है किसी सदमे में हो शायद
नहीं तो इस कदर तकदीर को कोसा नहीं जाता 


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1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी अच्छी रचना..

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