Friday, January 13, 2012

धीरज रखो प्रिये

यूँ रूठो मत ,नाराज न हो
छोड़ो खफ़गी ,जरा सुन तो लो |
मैं मारा-मारा फिरता हूँ ,अफसर की खुशामद करता हूँ |
करता हूँ मेहनत किसके लिये ? बोलो , किसके लिये ?
तुम्हारे लिये , सिर्फ तुम्हारे लिये ||

मैं सम्पूर्ण तुम्हारा हूँ , यह घर-बार तुम्हारा है
पहली तारीख के वेतन पर , पूरा अधिकार तुम्हारा है |
तुम्ही स्वामिनी घर की हो , तुम जैसे चाहो खर्च करो
किसकी मजाल जो बोल सके , बंदा ये गुलाम तुम्हारा है ||

पर अभी जरा सी तंगी है , धीरज रखो प्रिये ||

अभी चुन्नू की फीस भी बाकी है , और मुन्नू को आजकल खांसी है
चुन्नू की फीस भर लूँ पहले , मुन्नू की दवा कर लूँ पहले
फिर तुम्हें बनारस की साड़ी ले आऊँगा , धीरज रखो प्रिये ||

बाबूजी का चश्मा टूटा है , वो चश्मा भी बनवाना है
अम्माजी का सर दुखता है , उसका इलाज भी करवाना है
फिर तुम्हारे कंगन और झुमके बनवाऊंगा , धीरज रखो प्रिये ||

बरसात भी आने वाली है , और छत की हालत निराली है
टपकती है हलकी बारिश में भी , शायद ये गिरने वाली है
इसकी मरम्मत करवा लूँ पहले , खिड़कियों के टूटे शीशे लगवा लूँ पहले
फिर तुम्हें सर से पाँव तक सजाऊँगा , धीरज रखो प्रिये ||

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, ऐसी न जाने कितनी आशायें जीवित हैं हम सब में।

yashoda Agrawal said...

तुम्हें धीरज ही तो रखना है........रख लो
कह जो रहें हैं........नख-शिख तक सजा देंगे
माफ करना मैं अपनी भड़ास निकाल बैठी.....आज नाराज जो हूं उनसे
यशोदा

आशा बिष्ट said...

vastwikta sanjoye kavy..

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