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Monday, March 26, 2012
अरे बावरे मन आंगन में क्योंकर प्रीत जगाता है
प्रेम फरेबी होता अक्सर यह धोखा दे जाता है
शब्द, भाव और मर्यादाओं की निर्मलता ठोकर पर
आवेशित मन पूछ रहा, रब क्यों यह खेल रचाता है
-कुंवर प्रीतम
1 comment:
प्रवीण पाण्डेय
said...
संभवतः उसे इस खेल में आनन्द आता हो।
March 26, 2012 at 8:22 AM
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संभवतः उसे इस खेल में आनन्द आता हो।
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