Sunday, April 22, 2012


आओ प्यारे एक सिखाएँ तुमको असली मंतर
प्यार कभी मत करना वरना खुशियां सब छु-मंतर
प्रेम का अक्षर ढाई भैया तौबा इस से रखना
प्रेमरोग से राम बचाए, इसका जाल भयंकर
-कुँवर प्रीतम
21-4-2012
https://www.facebook.com/kunwarpreetam

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी ही गहरी भँवर है यह..

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम रोग है पर फिर भी सब कोई इसके जाल में फंसना चाहते हैं ...

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