लीजिये मित्रों प्रस्तुत है एक अवधी रचना.....
हाय रे हाय दइया देखो फिर से गर्मी आय रही है
आँखिन मा अबहिन से जइसे अंधियारी सी छाय रही है
मुंह मा सूखा परय लाग है चार कदम पैदल पर
ठंडा बेचय वालेन कय फिर से अब चांदी आय रही है.....
सुरुज देवता भये बिकराल धरती फिर से तपय लागि
गर्मी से मच्छरन कय नानी अब फिर से याद आवय लागि,
दिनौ रात अब चुवय पसीना नींद आवय मुश्किल से
अइसे मा बिजलिव अब आपन रंग देखाय रही है.....
कबहूँ आवय कबहूँ जाय पंखा हांकत हाथ पिराय
मन मा आवय घड़ी - घड़ी जाई लेई फिर से नहाय,
अच्छी बात है एतनी कि अब देखो पाकय लागे आम
दशहरी - हापुस कय खुशबू मुंह मा पानी लाय रही है....
- VISHAAL CHARCHCHIT
आँखिन मा अबहिन से जइसे अंधियारी सी छाय रही है
मुंह मा सूखा परय लाग है चार कदम पैदल पर
ठंडा बेचय वालेन कय फिर से अब चांदी आय रही है.....
सुरुज देवता भये बिकराल धरती फिर से तपय लागि
गर्मी से मच्छरन कय नानी अब फिर से याद आवय लागि,
दिनौ रात अब चुवय पसीना नींद आवय मुश्किल से
अइसे मा बिजलिव अब आपन रंग देखाय रही है.....
कबहूँ आवय कबहूँ जाय पंखा हांकत हाथ पिराय
मन मा आवय घड़ी - घड़ी जाई लेई फिर से नहाय,
अच्छी बात है एतनी कि अब देखो पाकय लागे आम
दशहरी - हापुस कय खुशबू मुंह मा पानी लाय रही है....
- VISHAAL CHARCHCHIT
2 comments:
sach kaha,
fir se garmi aay rahi hai
दर्द बढ़ाये गर्मी आये।
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