रिश्ता चाहे कोई भी हो
तब तक रहता है अधूरा
जब तक नहीं मिलते दिल से दिल,
जज्बातों से जज़्बात, विचारों से विचार
तरंगों से तरंगें और चाहत से चाहत....
नहीं चल सकता कोई भी रिश्ता
बहुत देर तक एकतरफा
ठीक उसी तरह जिसतरह से
नहीं बज सकती हैं कभी भी
सिर्फ एक हाथ से ताली और
नहीं चल सकती हैं बहुत दूर तक
सिर्फ एक पहिये पर कोई भी गाडी....
उसने हाथ दिया तो
तुम्हें भी हाथ बढ़ाना पड़ेगा,
किसी का साथ चाहिए
तो साथ निभाना पड़ेगा....
किसी से हक़ चाहिए तो
पड़ता है हक़ देना भी,
कभी - कभी पड़ता है सुनाना और
कभी - कभी पड़ता है सुनना भी,
रूठना - मनाना और झगड़ना भी.....
इसके अलावा ज़रूरी है रिश्ते के प्रति
वफादारी और ज़िम्मेदारी भी,
अब इन्हें निभा सकते हो तो निभाओ
वर्ना अकेले रह जाओ
बस खुद के लिए जीते जाओ....
जहां नहीं होगा कोई रोकनेवाला
नहीं होगा कोई टोकनेवाला
न होगा कोई रूठनेवाला - न मनानेवाला
न अकड़नेवाला - न झगड़नेवाला,
चलाओ अपनी मनमानी और
जब तक चाहो जियो अपने तरीके से....
लेकिन कब तक ?
कभी तो सताएगा अकेलापन?
कभी तो कमजोर होगी ताकत?
कभी तो लड़खडायेंगे तुम्हारे कदम?
याद रखो जश्न मनाओ तो
साथ देने वाले बहुत मिल जाते हैं,
पेट भरा हो तो खिलानेवाले बहुत मिल जाते हैं
सुख में साथ निभानेवाले बहुत मिल जाते हैं
लेकिन दुःख की घडी में - ज़रुरत हो तो
याद आता है कोई अपना ही और
काम भी आता है कोई अपना ही.....
ये बात एक पत्थर की लकीर है
जब चाहो आजमाना, ताकि -
कभी - किसी मोड़ पर तुम्हें
न पड़े हाथ मलना - न पड़े पछताना....
- VISHAAL CHARCHCHIT
तब तक रहता है अधूरा
जब तक नहीं मिलते दिल से दिल,
जज्बातों से जज़्बात, विचारों से विचार
तरंगों से तरंगें और चाहत से चाहत....
नहीं चल सकता कोई भी रिश्ता
बहुत देर तक एकतरफा
ठीक उसी तरह जिसतरह से
नहीं बज सकती हैं कभी भी
सिर्फ एक हाथ से ताली और
नहीं चल सकती हैं बहुत दूर तक
सिर्फ एक पहिये पर कोई भी गाडी....
उसने हाथ दिया तो
तुम्हें भी हाथ बढ़ाना पड़ेगा,
किसी का साथ चाहिए
तो साथ निभाना पड़ेगा....
किसी से हक़ चाहिए तो
पड़ता है हक़ देना भी,
कभी - कभी पड़ता है सुनाना और
कभी - कभी पड़ता है सुनना भी,
रूठना - मनाना और झगड़ना भी.....
इसके अलावा ज़रूरी है रिश्ते के प्रति
वफादारी और ज़िम्मेदारी भी,
अब इन्हें निभा सकते हो तो निभाओ
वर्ना अकेले रह जाओ
बस खुद के लिए जीते जाओ....
जहां नहीं होगा कोई रोकनेवाला
नहीं होगा कोई टोकनेवाला
न होगा कोई रूठनेवाला - न मनानेवाला
न अकड़नेवाला - न झगड़नेवाला,
चलाओ अपनी मनमानी और
जब तक चाहो जियो अपने तरीके से....
लेकिन कब तक ?
कभी तो सताएगा अकेलापन?
कभी तो कमजोर होगी ताकत?
कभी तो लड़खडायेंगे तुम्हारे कदम?
याद रखो जश्न मनाओ तो
साथ देने वाले बहुत मिल जाते हैं,
पेट भरा हो तो खिलानेवाले बहुत मिल जाते हैं
सुख में साथ निभानेवाले बहुत मिल जाते हैं
लेकिन दुःख की घडी में - ज़रुरत हो तो
याद आता है कोई अपना ही और
काम भी आता है कोई अपना ही.....
ये बात एक पत्थर की लकीर है
जब चाहो आजमाना, ताकि -
कभी - किसी मोड़ पर तुम्हें
न पड़े हाथ मलना - न पड़े पछताना....
- VISHAAL CHARCHCHIT
1 comment:
पूर्ण समर्पण, प्रेम करे परिपूर्ण स्वतः ही।
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