Friday, June 1, 2012

......गरीब हूँ मैं




रोटी के लिए घूमता रहता हूँ ,
इधर उधर ,
पाँव छिल जाते है ,
रुकता नही हूँ मगर ,
दिल से देगा मुझे कोई उसे भगवान् उसे बहुत देगा
मेरी दुआ है सभी के लिए ,
चाहे कोई बड़ा हो या छोटा ,
मिटटी के खिलौनों से खेलते है बच्चे मेरे ,
गर्मी सर्दी बारिश को   हंस कर झेलते है
सर पर छत भी न दे सका अपने बच्चो को
बाप में अजीब हूँ
गरीब हूँ में मजबूर हूँ मैं ,
पूरी नही कर पाता बच्चो की इच्छाओ को ,
बहुत ही बदनसीब हूँ मैं ,
गरीब हूँ मैं गरीब हूँ मैं......


@ संजय भास्कर

3 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

marmik vyatha gareeg kii

दिगम्बर नासवा said...

Gareeb insan kimansik vyatha ko likhahai Sanjay Ji me ... Maarmik rachna...

प्रवीण पाण्डेय said...

मजबूरियों में बीतता जीवन..

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