Thursday, June 14, 2012

अनकही बातें

कहीं रत जगे हैं 
कहीं अधूरी मुलाकातें हैं  
हवाओं की खामोशी में 
आती जाती सांसें हैं । 

डरता है कुछ कहने से 
मन की अजीब चाहतें हैं 
किसी कोने मे दबी हुई 
अब भी अनकही बातें हैं।

©यशवन्त माथुर©

3 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर रचना...
बधाई यशवंत..

सस्नेह.

प्रवीण पाण्डेय said...

अनकही बातों से ही बनती है, अगले दिन की प्रस्तावना..

दिगम्बर नासवा said...

Ye An kahi bate hi rachna ka roop le leti hain ...

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