Friday, June 15, 2012

क्षणिका

कहीं ये न हो 'निराश' कि
लौ के बुझ जाने पर
जश्न मनाने लगें
पर्दानशीं चिराग।

©यशवन्त माथुर©
 FB Status-14/06/2012

'निराश'=मेरा उपनाम जिसे बहुत कम प्रयोग करता हूँ।

2 comments:

Mamta Bajpai said...

बढिया है

प्रवीण पाण्डेय said...

यदि रोशनी नहीं कर पा रहे हैं तो बुझ जाना ही श्रेयस्कर।

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...