Saturday, June 16, 2012

शादी की सालगिराह मुबारक हो


'शा'श्वत है इस जग में आपका प्रम,
'दी'पक के समान उज्ज्वल भी है;
'की'मत आँकना है अति दुष्कर,
'सा'मर्थ्य तो इसमे प्रबल ही है ।
'ल'हू के रग-रग में है व्याप्त,
'गि'रि सम हरदम अटल भी है ;
'रा'त्रि के धुप्प तिमिर में भी,
'ह'मेशा चन्द्र सम धवल भी है ।
'मु'मकिन नहीं यह राह बिन आपके,
'बा'तों से सिर्फ कुछ कह नहीं सकता;
'र'हे ये साथ यूँ ही बना हुआ,
'क'लम से ज्यादा कुछ लिख नहीं सकता ।
'हो' ऐसा कि यह दिन यूँ ही हर बार आता रहे ।

इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर-"शादी की सालगिराह मुबारक हो" )

(यह कविता हमारी शादी की वर्षगाँठ पर मेरी जीवन साथी 'मानसी' को समर्पित ।)

4 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

aapko bhi bahut bahut badhai, rachna bhi bahut sundar hai

दिगम्बर नासवा said...

Vaah Anokha kaavymay tohfa hai ... Shadi ki Saal girah Mubarak ho ....

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।

सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो।


सादर

प्रवीण पाण्डेय said...

आप लोगों को बहुत बहुत बधाई हो..

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