कविताओं में
लेखों में
बैनरों मे लिखे नारों मे
जुलूसों में
सेमिनारों में
होती हैं
बड़ी बड़ी बातें
एक पल को
जो मन को भाती हैं
तर्क की कसौटी पर
सधी हुई बातें
जो
कुतर्कों से
कट नहीं पाती हैं
अच्छी लगती हैं
मंच के सामने बैठ कर
सुनने में
और कुर्सी से उठने के बाद
मंच से बोलने के बाद
ये अनमोल बातें
खो देती हैं मोल
हार जाती हैं
धूल की तरह जमी हुई
बरसों पुरानी सोच से
तर्क के भीतर छुपे
कुतर्क से
लेखों में
बैनरों मे लिखे नारों मे
जुलूसों में
सेमिनारों में
होती हैं
बड़ी बड़ी बातें
एक पल को
जो मन को भाती हैं
तर्क की कसौटी पर
सधी हुई बातें
जो
कुतर्कों से
कट नहीं पाती हैं
अच्छी लगती हैं
मंच के सामने बैठ कर
सुनने में
और कुर्सी से उठने के बाद
मंच से बोलने के बाद
ये अनमोल बातें
खो देती हैं मोल
हार जाती हैं
धूल की तरह जमी हुई
बरसों पुरानी सोच से
तर्क के भीतर छुपे
कुतर्क से
शायद बातों की
यही नियति है ।
यही नियति है ।
©यशवन्त माथुर©
3 comments:
मन की लहरें सब बहाकर ले जाती हैं..
dil ke bhed khol deti hain baatein
bahdia kavita yashwant bhai
बहुत सुन्दर यशवंत....
सस्नेह
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