Monday, June 25, 2012

बातों की नियति

कविताओं में
लेखों में
बैनरों मे लिखे नारों मे
जुलूसों में
सेमिनारों में
होती हैं
बड़ी बड़ी बातें
एक पल को
जो मन को भाती हैं
तर्क की कसौटी पर
सधी हुई बातें
जो
कुतर्कों से
कट नहीं पाती हैं
अच्छी लगती हैं
मंच के सामने बैठ कर
सुनने में
और कुर्सी से उठने के बाद
मंच से बोलने के बाद
ये अनमोल बातें
खो देती हैं मोल
हार जाती हैं
धूल की तरह जमी हुई
बरसों पुरानी सोच से
तर्क के भीतर छुपे
कुतर्क से
शायद बातों की
यही नियति है ।
©यशवन्त माथुर©

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन की लहरें सब बहाकर ले जाती हैं..

Anonymous said...

dil ke bhed khol deti hain baatein
bahdia kavita yashwant bhai

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर यशवंत....
सस्नेह

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