Saturday, September 29, 2012

खाली हाथ ..



सूरज आता खाली हाथ ... चाँद खाली हाथ जाता है 
कुछ खुशियाँ खोजने में ...पूरा दिन निकल जाता है ||

इस कद्र पड़ी है महंगाई की मार सब पर 
अब आम दिनों सा... त्यौहार निकल जाता है ..||

झूठे वादें झूटी कसमें और बेफिजूल की रस्में 
इन्ही चक्करों में सबका संसार निकल जाता है 

जेब में जब आ जाता है गाँधी उनके ..
मन से उनके गाँधी बनने का विचार निकल जाता है

लाख चाहता है हर एक ..."अन्ना" के रास्ते पर चलना 
पर जिन्दगी की रेस में ..आगे... भ्रष्टाचार निकल जाता है ||

चारों और से मजबूर आँखें ....जब शौर करती है 
तब वो आँख पर पर्दा कर ....घर से बाहर निकल जाता है ||
चाहता तो  मैं भी हूँ उसके लिए ताजमहल बनवाना 
कांग्रेस के दौर में फटी जेब से... सारा प्यार निकल जाता है :)

1 comment:

Unknown said...

सुंदर प्रस्तुति |

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