दिन के उजाले में
सो जाते हैं सपने
रात के अंधेरे में
जाग जाते हैं सपने
अपने से लगते हैं
कभी पराए से लगते हैं
रोते हैं खौफ से
कभी बिंदास हँसते हैं
रंग बदलते हैं सपने
यूं तो गिरगिट की तरह
नीरस स्वाद की तरह
खुद को दोहराते हैं सपने
मतलबी बन कर
तो कभी बेमतलब ही सही
ख्यालों की शाख पे
उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।
©यशवन्त माथुर©
सो जाते हैं सपने
रात के अंधेरे में
जाग जाते हैं सपने
अपने से लगते हैं
कभी पराए से लगते हैं
रोते हैं खौफ से
कभी बिंदास हँसते हैं
रंग बदलते हैं सपने
यूं तो गिरगिट की तरह
नीरस स्वाद की तरह
खुद को दोहराते हैं सपने
मतलबी बन कर
तो कभी बेमतलब ही सही
ख्यालों की शाख पे
उल्लू जैसे नज़र आते हैं सपने।
©यशवन्त माथुर©
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