(चित्र आदरणीय अफलातून जी की फेसबुक वॉल से ) |
सपने 'ये' भी देखते हैं
सपने 'वो' भी देखते हैं
'ये' इस उमर में कमाते हैं
दो जून की रोटी जुटाते हैं
जुत जुत कर रोज़
कोल्हू के बैल की तरह
'उनको' निहार कर
'ये' बस मुस्कुराते हैं
'इनको' पता है कि दुनिया
असल में होती क्या है
रंगीन तस्वीरें हैं
मगर अक्स स्याह है
'इनके' सपनों की दुनिया में
'उनकी' बे परवाह मस्ती है
'ये' दर्द को पीते हैं
और 'उनकी' आह निकलती है
सपने 'ये' भी देखते हैं
सपने 'वो' भी देखते हैं
बस 'ये' ज़मीं पे चलते हैं
और 'वो' आसमां में उड़ते हैं।
©यशवन्त माथुर©
1 comment:
बहुत सुन्दर..
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